शनि ग्रह लाल किताब की नज़र से

पक्का घर 10
श्रेष्ठ घर 2, 7-12
मन्दे घर 1,4,5,6
उच्च घर 7
नीच घर 1
मसनुई ग्रह शुक्र + बृहस्पति = केतु स्वभाव
मङ्गल + बुध = राहु स्वभाव
शनि सुर्य पुत्र है।
केतु कुन्डली में यदि शनि से पहले घरो में हो तो वह इच्छाधारी सांप होगा ।
सूर्य शनि को देखे तो शुक्र की हानि होगी ।
बृहस्पति के घरों मई शनि कभी भी बुरा प्रभाव नहीं देता (2 , 9 , 12) बुरा असर होने पर बृहस्पति द्वारा ही ऊपचार भी किया जा सकता है ।
शनि 4 में चन्दर की हानि करता है ।
खाना न 8 में दुर्घटना का योग भी बना देता है ।
मंगल के घरो में यानि 3 , 8 में बुरा असर देता है ।
शनि शुक्र का प्रेमी है ।
शनि पापी ग्रहो का सरताज भी है ।
चन्दर मंगल के साथ इसका प्रभाव नीच हो जाता है ।
शनि शुक्र के साथ होने की स्थिति में जो ग्रह इनको देखे वही बर्बाद ।
दोस्तों ये थी कुछ छोटी छोटी परन्तु जरूरी बातें ऐसी हो और जानकारी के साथ में आप सब से मिलता रहूंगा धन्यवाद ।

चन्दर ग्रह लाल किताब की नज़र से

पक्का घर 4
श्रेष्ठ घर 1 – 5 , 7 – 9
मंदे घर 6 , 8 , 10 , 12
शत्रु ग्रह राहु, केतु
मित्र ग्रह सूर्य , बुध
चन्दर शुक्र बराबर है परन्तु चन्दर दुश्मनी करता है शुक्र से।
चन्दर बुध बराबर है परन्तु चन्दर दुश्मनी करता है बुध से.
मसनुई सूर्य + बृहस्पति = चन्दर।
पोशाक परना।
चन्दर के घर मई बैठा शत्रु ग्रह भी उत्तम असर देता है।
चन्दर शत्रु ग्रहो को देखने पर अपना ही असर देना बंद कर देता है।
परन्तु बुरे ग्रहो की दृष्टि होने पर वह अपना बुरा असर ज़रूर चन्दर मे मिला देते है।
यदि बृहस्पति पहले घरो मई 1 – 7 और केतु 8 – 12 तो चन्दर का फल ख़राब हो जायेगा।
चन्दर कभी ग्रह फल का नहीं होता।
चन्दर जब कभी भी आपसी दुश्मनी वाले ग्रहो के बीच हो तो उन ग्रहो मे दुश्मनी हटा के दोस्ती पैदा करवा देता है।
घोड़ा यानि चन्दर सिर्फ 3 ही अवस्थाओं मे जगता है जब वह खाना न 3 , 7 , 8 मई होता है।
चन्दर राहु एक साथ 45 तक (7, 12 मे नहीं) मंदे। राहु के साथ चन्दर मध्यम हो जाता है और केतु ग्रहण का कारण है चन्दर के लिए।

दोस्तों इसी प्रकार की और छोटी छोटी परन्तु बहुत जरूरी grammar के लिए मुझे अपने कमैंट्स ज़रूर भेजे और सुझाव भी की कैसे मै इनको और बेहतर बना सकता हु।
धन्यवाद।

बृहस्पति ग्रह लाल किताब की नज़र से

दोस्तों आज हम बृहस्पति ग्रह के बारे में संक्षेप में कुछ खास खास बातें बातएंगे जो की कुंडली में फलादेश करते समय बहुत लाभकारी सिद्ध होंगी।

गुरु यानि बृहस्पति के कुंडली में पक्के घर २, ५, ९, १२।
गुरु के कुंडली में मंदे घर ६ , ७ , १०।
मित्र ग्रह …. सूर्य , चन्दर , मंगल।
शत्रु ग्रह …. बुध , शुक्र।
सम ग्रह। ….. राहु केतु , शनि।
उच्च खाना न ४।
नीच खाना न १०।
मस्नूई ग्रह सूर्य + शुक्र।
पोशाक पगड़ी।
१ से ५ और १२ न खाना में गुरु मदद करता है रवि शनि दोनों की।
जबकि ६ से ११ न खाना से केवल शनि के लिए मददगार होता है।
इसके पक्के घरो में इसके शत्रु ग्रह होने पर यह मंदा हो जाता है।
पूर्णतया अकेला बैठा हुआ गुरु कभी भी मंदा प्रभाव नहीं देता।

सूर्य + राहु या केतु + चन्दर ग्रहण के समय गुरु का प्रभाव भी अशुभ हो जाता है।
बृहस्पति खुद की मंदी निशानी पहले शनि की अशुभता से प्रकट करता है।

बृहस्पति अकेला बैठा या शत्रु घरों में बैठा हुआ कभी अशुभ प्रभाव नहीं देता परन्तु यदि शत्रु ग्रह इसके घरो या जड़ों में बैठे हो तो दुष्प्रभाव होता है।

केतु बृहस्पति से पहले घरों में बृहस्पति का मंदा असर।
बृहस्पति पहले घरों में और केतु बाद में तो चन्दर का फल ख़राब हो जायेगा।

वही अगर राहु बृहस्पति से पहले घरों में हो तो बृहस्पति दोनों जहाँ का मालिक होगा यानि सांसारिक और आध्यात्मिक।

आप लोग अपने comments देते रहे ताकि मैं और भी जानकारिया इसी प्रकार आप तक पहुँचता रहु

धन्यवाद